Wednesday, October 9, 2013

सुवर्ण पंछी -- भूमिका

सुवर्ण पंछी -- भूमिका 
ये जरूरी नहीं कि इसांन जो महसूस करे उसे औरों को बताए। खुद से रिश्ता बड़ा मजबूत और बेजोड़ होता है। कुछ बातें वे केवल स्वयं से करता है और किसी से नहीं, कुछ स्वयं से ही छुपाता है सच्चाई जानते हुए भी और कुछ घटनाएं उसके जीवन में ऐसी घटती है जो वह सबको बताना चाहता है ताकि लोग उसे सुने और अपनी राय कायम करे क्योंकि सुखद घटनाएं सबको बताने से सुख बढ़ता है। जब दिल में कोई बात हो तो उसे बताने से या कहने से सुकुन मिलता है। कुछ कहने से ही पता चलता है कि आप के विचार कैसे है। आप किसी व्यक्ति विशेष एवं वस्तु विशेष के विषय में क्या सोचते है। मैं भी अपने जिंदगी के कुछ अच्छे बुरे पहलु सब के साथ बांटना चाहती थी। जिस प्रयास का नाम है सुवर्णपंछी।

सुवर्णपंछी जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह मेरे पशु-पक्षी प्रेम एवं उनके प्रति संवेदना को प्रकट करती है। पशु-पक्षी कितने कोमल एवं प्यारे होते है इस बात का ज्ञान मुझे उन्हें पालने के बाद ही पता चला। यो कि औरत शादी के बाद अपने पति की पसंद को प्राथमिकता देती है क्योंकि वो जिदंगी का सबसे महत्वपूर्ण अंग बन जाता है, तो मैंने भी वही किया। मेरे पति प्रकाश को भी मेरे तरह पशु-पक्षी पालने का शौक था तो इस तरह मेरी और उनकी पसंद एक हो गई। इसलिए पशु-पक्षी पालने में ज्यादा समस्या नहीं आई।

मैंने आई एस की परीक्षा अच्छे नम्बरों से उतीर्ण की और आई एस अफसर बन गई। चूंकि मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़ी थी इसलिए मेरी नौकरी में बार- बार तबादले होते थे। मुझे पशु-पक्षियों से प्रेम है इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मेरी पोस्टिंग पुणे में हुई और हमने यानि मैंने और प्रकाश ने एक अलसेशियन कुत्ता 'टोटो' पाला। उसके साथ ऐसी दोस्ती कायम हुई कि उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन है। टोटो हमारे परिवार का हिस्सा बन गया। टोटो इतना अनुशासित एवं प्यारा कुत्ता था कि हमारे आस-पड़ोस के लोगों ने हमें टोटो का माता-पिता बना दिया। उसके मरने के बाद प्रकाश और मेरे जीवन में एक खालीपन सा गया। टोटो के जाने के बाद हमारे घर में कई पशु-पक्षी आए परन्तु टोटो के साथ जो रिश्ता कायम हुआ था वह किसी के साथ नहीं बन सका। १९८३ में  

No comments: