०९--हमारा दोस्त टोटो
जीवन में जितना महत्व हमारे नातेदारों का, परिचितों एवं मित्रों का होता है, कुछ ऐसा ही महत्व पास-पड़ोस के फूल, पत्त्िायों, वृक्ष, लताओं, पशु-पक्षियों का होता है। पहाड़ों, नदियों, यहाँ तक कि शहरों के भूगोल का भी होता है। मराठी संत तुकाराम के शब्दों में, वृक्षवल्ली, वनचर भी हमारे नातेदार होते हैं, वही हमें ब्रह्माण्ड से नाता जोड़ने तक ले जाते है।
नाते की कड़ियाँ कहाँ शुरू होती हैं और कहाँ-कहाँ तक जा सकती हैं, कहना मुश्किल है। जो पहली ठोस कड़ी मेरे मन में बसी है, वह है हमारे दोस्त टोटो की।
मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में आई, उसी दौरान मेरी शादी भी हुई । इसलिये दो महीने अपने पति प्रकाश के साथ कोलकाता में गुजारने के बाद मुझे ट्रेनिंग के लिये एक वर्ष मसूरी आना पड़ा । इसके बाद मेरी पोस्टिंग हुई पुणे में और भविष्य में भी महाराष्ट्र में ही रहने की संभावना थी इसलिये प्रकाश ने भी अपना तबादला पुणे में करवा लिया। मेरी पोस्टिंग थी एस्.डी.एम् हवेली।
मुझे क्वीन्स गार्डन में सरकारी घर मिला हुआ था। जैसे कि सारे सरकारी घर होते हैं, उसी तरह यह भी काफी बड़ा था। रहने वाले हम दो ही जने । मेरी डयूटी का कोई समय तय नहीं था । कभी बिल्कुल सुबह तो कभी आधी रात के बाद तक। और टूरिंग तो महीने में बीस दिन । इसके ठीक उल्टे प्रकाश की डयूटी इतनी नियमित थी कि कोई उनके आने-जाने को देखकर ही अपनी घड़ी मिला ले । शाम का पूरा वक्त अपनी मन मर्जी का ! बड़ा घर होने के कारण प्रकाश के बचपन का शौक उभर आया - कुत्ता पालने का । हमने बड़ी खोजबीन करने के बाद एक अल्सेशियन पिल्ला ले लिया । उसका नाम रखा -टोटो। किसी अफ्रीकी भाषा में इसका अर्थ होता है, छोटा बच्चा । टोटो के आने के कुछ ही दिनों बाद हमारे पहले बेटे आदित्य का भी जन्म हुआ। दोनों के बीच एक अजीब दोस्ती कायम हो गई ।
Wednesday, August 8, 2007
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