Wednesday, August 8, 2007

२०-- सुवर्ण पंछी

२०-- सुवर्ण पंछी

क्या तुम्हारे क्लास में वह कहानी पढाई जाती है कि एक आदमी के हाथ सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी आ गई। वह रोज एक अंडा देती थी। लेकिन एक दिन उस आदमी ने सोचा कि मुर्गी का पेट काटकर मैं सारे अंडे एक साथ ले लूँ- रोज-रोज राह क्यों देखूँ ! बस, उसने मुर्गी को मार दिया, पेट में कोई अंडे नहीं मिले, मुर्गी मर गई और आदमी को अपने लालच का फल मिल गया।

जब हमारे स्कूल में यह कहानी पढाई गई तो मास्टरजी ने पूछा- इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? हम सबने कहा- लालच बुरी बला है। लेकिन एक लड़के ने कहा- हमें पक्षी को नहीं मारना चाहिए। तब तो हम लोग उस लड़के को बुद्धू समझ कर हँसे, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि उसने ठीक ही कहा था। तब मैंने यह भी सोचा कि किसी पक्षी के पेट में भला सोना कैसे आ सकता है! पक्षी का सोने से क्या रिश्ता !

लेकिन उन्हीं दिनों में मुझे किसी ने एक छोटे-से प्राणी साँपसोई का परिचय कराया- कि इसे देखने से पैसे मिलते हैं। देहातों में इसे 'बामन बिच्छी' भी कहते हैं, क्योंकि यह न काटते हैं, न कोई अन्य उपद्रव करते हैं। पैसे मिलने की बात थी। फिर तो क्यों, कैसे ये सब प्रश्न पीछे रह गए, और हम लोगों का रोजाना यही काम हो गया कि सॉपसोई पर नजर रखें। उनके छिपने और रहने की जगह कहाँ हैं ; कब वह बाहर निकलते हैं और जब वह तेज गति से इधर से उधर भागते हैं तो कैसे उनके भूरे शरीर की छोटी सुनहरी धारी धूप में चमकती है। हमारे स्कूल में उनके रहने की कई जगहें थीं और हर छोटी-बड़ी छुट्टी में हम वहाँ चले जाते थे। जिस दिन सॉपसोई दिख गई, उस दिन स्कूल से घर जाते हुए रास्ते पर देखते जाते कि कहीं कोई पैसा पड़ा हुआ मिल जाए। अक्सर तो कोई पैसा नहीं मिलता था। लेकिन हमारा खेल जारी रहता था।

इन्हीं वर्षों में माँ ने मेरा परिचय कराया छुछूंदर से जो चूहे की तरह ही होती है। इसके शरीर पर एक खास चमक होती है। माना जाता है कि छुछूंदर भी लक्ष्मी का वाहन है- यदि यह घर के अंदर आ जाए- जो वह कभी नहीं आती, तो समझो लक्ष्मी भी आ जाएगी। वैसे तो बंगालियों में उल्लू को भी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है लेकिन उल्लू देखने से पैसे
मिलने की कोई किंवदंती मैंने नहीं सुनी है।

फिर किसी ने बताया कि भारद्वाज पक्षी को देखने से पैसा या कोई बड़ा शुभ फल मिलता है। भारद्वाज पक्षी बड़ा शर्मीला होता है। आकार में कोयल से भी बड़ा यह पक्षी अक्सर पेड़ों में छिपकर रहता है और अपनी घन-गंभीर आवाज में 'कुक्‌-कुक्‌''कुक्‌-कुक्‌' की पुकार लगाता रहता है, जैसे खेतों में पानी के पंप की आवाज आती है।

भारद्वाज बड़ा सुंदर पक्षी है। मोटा-थुलथुल, चमकीले काले रंग का इस पक्षी की पीठ सुनहरे तथा कॉफी के रंग में होती है। यह ज्यादा दूर उड़ना पसन्द नहीं करता। खुले आँगन में चहलकदमी करते हुए कीड़े, अनाज इत्यादि चुनता रहता है। लेकिन इसकी चाल और उड़ान दोनों ही बड़े शानदार होते हैं, जैसे कोई राजपुरूष हो।

चूँकि यह अधिकतर पेड़ के अंदर छिपकर रहता है, इसलिए इसे देखना बड़ा कठिन है। बिलकुल ताक लगाकर, इंतजार करके, इसके चारा चुगने के समय और इसकी प्रिय जगहों पर निगाह रखी जाए, तभी इसे देख सकते हैं।

इसीलिए मुझे कभी भारद्वाज का 'कुक्‌-कुक्‌' वाला लय से भरा खर्ज स्वर सुनाई पड़े तो मैं बीस-तीस मिनट तो उसकी खोज में अवश्य गुजारती हूँ। लेकिन यदि वह दीख जाए तो बाद में मैं याद रखना भूल जाती हूँ कि कोई शुभ घटना वास्तव में हुई या नहीं।
ऐसा ही शुभ शकुनवाला दूसरा पक्षी माना जाता है- धनेश या धन चिरैया। यह भी एक विशाल पक्षी होता है, जिसकी चोंच बिलकुल सोने के रंग वाली होती है। इसे अंक्रेजी में 'हार्न बिल' कहते हैं। प्रसिद्ध पक्षी-विशारद सलीम अली को यह इतना प्रिय था कि अपनी बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सोसाइटी का बोध चिन्ह भी उन्होंने धनेश ही रखा है।

अब जिस पक्षी का नाम ही धनेश हो उसे तुम समझ सकते हो। धनेश अर्थात्‌ धन का ईश्र्वर। इसलिए माना जाता है कि धनेश को देखने से पैसा मिलता है। करीब-करीब चील के आकारवाला यह पंछी भी बड़ा संकोची होता है और छिपकर ही रहता है। इसीलिए यदि कोई सोचे कि इसे देखने पर सोना या पैसा मिलता है तो क्या आश्चर्य !

मैं जब सांगली में कलेक्टर थी, तब मेरे आँगन में एक विशाल रूप से फैला हुआ शिरीष्ज्ञ का पेड़ था। उसके अंदर कहीं पर धनेश के एक पूरे कुटुंब ने अपना डेरा बनाया हुआ था। बड़े तड़के ही वे सारे उठकर कहीं दूर चले जाते थे और शाम को वापस आते थे। उन्हें देखने के लिए हम लोग कभी-कभी सुबह का अलार्म लगाकर उनसे पहले उठ जाते थे और फिर प्रतीक्षा करते कि कब वे उड़ेगे और हम उन्हें देख सकेंगे। फिर वह पूरा दिन इतनी प्रसन्नता से बीतता था कि वही किसी सोने की तोल के बराबर हो जाता।

तुम्हें यदि एक विशालकाय धलेश देखना हो तो भुवनेश्र्वर के 'नंदन-कानन' चिड़ियाघर में जाना। वहाँ बच्चों के लिए एक छोटी रेलगाड़ी चलती है। रेलगाड़ी के प्लेटफार्म पर टिकट चेकर कि जगह लकड़ी का बनाया हुआ एक विशालकाय धनेश पक्षी रखा हुआ है। जिस किसी ने उसे बनवाकर वहाँ रखने की बात सोची है, उसे तो मैं सौ के सौ नंबर दूँगी। तुम भी दोगे न?
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1 comment:

Alok Kumar Mishra said...

सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद