०४--सयानी मैना रानी
हमारे घर के आंगन में पांगारा का एक बड़ा वृक्ष है। होली से ठीक पहले इसमें लाल-केसरिया रंग के बडे सुन्दर फूल खिलते हैं। मुझे याद आता है, बचपन में हम होली का रंग बनाने के लिए सेमल या पांगारा के फूल चुनते थे।
पांगारा के फूलों में मधु बहुत होता है, जिसे चूसने के लिए सनबर्ड, बुलबुल, दयाल, कोयल, मैना इत्यादि आते हैं और पेड की एक-एक डाल पर अपना हक जमाने के लिए झगडते रहते हैं।
चलो, फूल के मधु के लिए झगडो। लेकिन कई बार पंछी इस बात के लिए भी झगडते हैं कि घर बनाने की जगह पर किसका राज हो। हमारे गैरेज के छत में एक अच्छी-सी जगह बनी थी। बरसाती और छत के बीच में। एक दिन मैंने देखा कि बीस-तीस चिडियाँ एक तरफ और पांच छः मैना दूसरी तरफ। हो रही थी जमकर लडाई। थोडी देर में मैना गुट जीता और चिडिया गुट हार गया। फिर अगले दो-तीन घंटे मैना के घोंसले बनते हुए मैं देखती रही।
चलो, घर की जमीन के लिए लड़ो, लेकिन कागज के लिए भी ! एक बार मैं घूमने निकली तो देखा कि एक खाली जगह पर तीन मैनाएँ आपस में लड रही थीं। एक की चोंच में पीले रंग की चमकती पन्नी थी जो सिगरेट के पॅकेट में अंदर से लगाई जाती है। उस पर सुबह की धूप पडने से वह और भी चमचमा रही थी। बाकी दो मैनाएँ उस पन्नी के लिए झगड रही थीं। पंखों से, नाखूनों से और चोंच से भी। उस दृश्य ने मुझे जकड कर रखा। बडी देर मैं रूकी- लेकिन क्या मजाल जो पन्नी फट जाए ! उसकी मालकिन मैना उसे संभालती हुई लड रही थी। थोडी देर बाद बसों का आना जाना बढा तो तीनों वहाँ से उड़ गईं।
Wednesday, August 8, 2007
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