Wednesday, August 8, 2007

०९--हमारा दोस्त टोटो --7--वह दुखभरा दिन

टोटो का हम पर पूरा भरोसा था। उसे रैबीज या अन्य इंजेक्शन लगाने के लिये अस्पताल में ले जाने पर उसे कभी सांकल या पट्टा नही लगाना पड़ता। एक बार उसे विटामिन बी काम्पलेक्स के इंजेक्शनों का बड़ा कोर्स करना पड़ा। इस इंजेक्शन की मात्रा अधिक होती है और लेते समय दुखता भी बहुत है। उसे मैं या प्रकाश यह इंजेक्शन लगाते थे। उसे लेटे लेटे बाँई ओर से दाँई ओर मुड़ने के लिये 'पलट' शब्द सिखाया हुआ था। उसे 'पलट' पोजिशन में लेटने के लिये कहकर हम इंजेक्शन तैयार करते। फिर उससे कहते, टोटो, यह इंजेक्शन दुखेगा, लेकिन हिलना मत! फिर इंजेक्शन पूरा हो जाने तक वह बिल्कुल नहीं हिलता था। हालाँकि दर्द से उसका शरीर कँपकँपाता था और मुँह से कूँ-कूँ भी निकलता, लेकिन वह जरा भी हिले बिना इंजेक्शन ले लेता।

फिर अचानक मेरा तबादला मुंबई हो गया। मैं, आदित्य और टोटो मुंबई में रहने लगे। टोटो के दुर्दिन तभी से शुरू हुए। मुझे हाजी अली एरिया में सरकारी घर मिला था, जहाँ से हम लोग अक्सर समुंदर के किनारे और जब कभी समुंदर पीछे हट गया हो तो उसके अंदर भी चले जाते। वहाँ समुंदर से आधा किलोमीटर अंदर जाने पर प्रसिद्ध हाजी अली की मस्जिद और दरगाह है, जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों जाते हैं। हमलोग टहलते हुए वहाँ तक चले जाते थे। लेकिन मुंबई की उमस भरी हवा टोटो को रास नहीं आई। उसके कानों में पीब होने लगा और ऑपरेशन के लिए उसे आठ दिन वरली के अस्पताल में रखना पड़ा। जब मैं उसे लेने गई तो मेरे गले लिपट कर ख़ूब रोया जैसे कह रहा हो, 'क्यों मुझे यहाँ क्यों छोड़ा था'।

तभी प्रकाश को ऑफ़िस के काम से तीन महीने हॉलेंड जाना पड़ा। मुंबई की नौकरी में भी मुझे टूरिंग के लिए तीन चार दिन बाहर जाना पड़ता था। आदित्य को तो मेरी सासू जी के पास रखा जा सकता था, लेकिन टोटो को नहीं। थोड़े बहुत उपाय कर चुकने के बाद उसे पुणे में ही एक परिचित मित्रके फ़ार्म-हाउस में रखवा दिया। वहाँ उसकी बड़ी दुर्गत बनी। शायद वे उसे खाना नहीं देते थे। बाद में मुझसे कहा कि आप लोगों के बग़ैर वह खाने से इन्कार कर देता था। लेकिन मुझे कभी भी मुंबई में फ़ोन या पत्र लिखकर नहीं बताया। प्रकाश वापस आने पर सबसे पहले फ़ार्म हाउस जाकर उससे मिल आया। तब भी टोटो प्रकाश से लिपट कर बहुत रोया। लेकिन तब तक पुणे का मेरा सरकारी घर हम ख़ाली कर चुके थे और प्रकाश को सबसे पहले किराए का घर ढूँढ़ना था। प्रकाश को लगा कि घर आ जाने पर टोटो ठीक हो जाएगा। तभी मेरा तबादला भी फिर से पुणे में हो गया। हम लोगों ने मित्र को बताया कि आठ-दस दिनों में ही टोटो को घर ले जाएँगे।

लेकिन आठवें ही दिन जब उसे लाने पहुँचे तो वहाँ के नौकरों ने बड़ी बेदर्दी से बताया कि उसकी तबीयत बहुत खऱाब थी, इसलिए कल ही उसे जहर का इंजेक्शन देकर मार दिया है - वह देखिए, उधर उस गड्ढे में उसे गाड़ दिया है।

वह दुखभरा दिन और मित्र कहलाने वाले उस परिचित का यह दुर्व्यवहार हम कभी नहीं भूल सकते। बाद में भी हमारे घर में कई कुत्ते आए, लेकिन जो टोटो था वैसा और कोई नहीं था।

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