Wednesday, August 8, 2007

०९--हमारा दोस्त टोटो --3-- प्रसिद्व था टोटो

उसे आदित्य के छोटा बच्चा होने का भान था । यदि उससे कहो कि आदित्य के लिये 'स्पीक' करो तो वह आदित्य के पास जाकर बहुत धीमी आवाज में भौंकता था । वैसे भी उसे आदित्य के आसपास रहना अच्छा लगता । यदि हमने आदित्य को पलंग पर सुलाया तो टोटो उसी पलंग के नीचे घुस जाता । आदित्य अकसर लुढ़ककर पलंग से गिर जाया करता था, जिस कारण हमने उसे जमीन पर सुलाना शुरू किया था। तब टोटो भी वहीं पास जाकर बैठ जाता । हम उसे याद दिलाते कि आदित्य के बिस्तर पर नहीं जाना है । लेकिन वह हमारी न.जर छिपाकर अपना अगला पंजा या थूथनी रख ही देता । फिर यदि डाँट पड़ी तो पीछे हट जाता, लेकिन पूंछ रख देता था।

घर में कोई मेहमान आये और गप्पों में उसे शामिल न किया जाये तो उसे बुरा लगता था । मेहमान आते ही वह सबसे पहले उस कुर्सी के नीचे चला जाता जो प्रकाश की फेवरिट कुर्सी थी । कभी मेहमान डर जाते तो उसे बालकनी में भेजना पड़ता । वहाँ से वह कूं-कूं कर अपनी गुहार लगाता कि मैं भी आऊंगा । कभी-कभी हम मेहमानों को समझा-बुझाकर उसे बुला लेते । कभी नहीं बुलाते तो वह रूठ जाता। फिर उसे मनाने के लिये प्रकाश को एकाध घंटा उससे बातें करनी पड़ती थीं ।

कुत्तों को घुमाते समय उनके गले में पट्टा लगाना पड़ता है या साँकल लगानी पड़ती है लेकिन टोटो इतना सीख गया था कि प्रकाश के साथ पूरी तरह खुला ही घूमता था। उसे 'जा' कहने से वह हमसे हटकर थोड़ा-बहुत इधर उधर भटक लेता था, लेकिन 'हील' कहने का मतलब था कि उसे प्रकाश की बाँई बा.जू में आकर प्रकाश के कदम से कदम मिलाकर एकदम मिलिट्री चाल में चलना है। कभी वह इधर उधर चला जाय और कहो कि 'टोटो, रास्ते पर कैसे चलते हैं', तो झट वह वापस आकर 'हील' पो.जीशन में चलने लगता। क्वीन्स गार्डन में कई मिलिट्री और पुलिस के अधिकारी रहते थे और टोटो का अनुशासन देखकर अचंभा करते थे और प्रकाश से दोस्ती करते थे। आसपास के बच्चे प्रकाश को या मुझे 'टोटो के बाबा', या 'टोटो की माँ' के नाम से ही जानते थे। हमारे घर दूर शहरों से आने वाले कई रिश्तेदारों को केवल इस पहचान पर हमारे घर पहुँचाया जाता कि 'अच्छा, वहीं , जिनके घर में टोटो है'! वहाँ नए आए पुलिस कमिश्नर श्री मोडक से मिलने हम गये तो उन्होंने प्रकाश को देखकर पूछा - आपको तो मैं पहचानता हूँ। आप वही हैं ना जिनका एक बड़ा अनुशासित कुत्ता है?'

प्रकाश को सुबह सात बजे ऑफ़िस के लिए निकलना पड़ता। घर से दो किलोमीटर दूर ऑफ़िस की पिक-अप बस आया करती थी। सो सुबह सुबह मैं, प्रकाश और टोटो स्कूटर से वहाँ तक जाते और प्रकाश को वहाँ छोड़कर मैं स्कूटर से वापस आ जाती। टोटो भी स्कूटर के साथ तीस-चालीस किलोमीटर की स्पीड से दौड़ते हुए आता-जाता। उसकी स्पीड के लिए भी वह काफ़ी प्रसिद्व था।

No comments: