टोकरी में सुरवंट
एक बार हमारे घर के आम के पेड पर हमने कई सुरवंट देखे। गहरे हरे रंग के, रोएंदार शरीर वाले सुरवंट। सुरवंट का शरीर रोएंदार हो तो इसका अर्थ है उससे तितली निकलेगी मॉथ के सुरवंट का शरीर चिकना होता है। सुरवंट के रोएं देखने में तो मुलायम, रेशम की तरह होते हैं, लेकिन शरीर में लग जाएं तो डंख की तरह चुभते हैं और देर तक इनकी जलन कम नही होती।
सुरवंट बहुत थे- हमें डर लगा कि अब तो हमारे आम का पेड गया। ये सारी पत्त्िायाँ खा लेंगे। हमने एक टोकरी में कुछ कागज बिछाए। दूसरे कई पेडों से मुलायम पत्ते तोड कर सुरवंटों के खाने का इन्तजाम किया। आम की वे पत्त्िायाँ भी तोडीं,
जिनपर सुरवंट थे। टोकरी हमने बच्चों के कमरे में रख दी। उनसे कहा- देखो, ऐसा मौका हमेशा नही मिलता। ध्यान से देखते रहना कि सुरवंट कैसे बढते हैं, कैसे तितली बनते हैं, इत्यादि।
अब तक रात हो चुकी थी। कीडे ज्यादा हलचल नही कर रहे थे, न ही वे पत्त्िायाँ खा रहे थे। रात में भी हमने बार बार उठकर देखा। सारे सुरवंट शांत थे।
लेकिन दूसरे दिन सुबह होते ही मानों सारे सुरवंटो में जोश भर गया। वे टोकरी से बाहर आकर टेबुल पर किताबों पर, अलमारियों पर चढने लगे। हमने जल्दी जल्दी उन पचास साठ सुरवंटों को पोस्टकार्ड पर उठाकर वापस टोकरी में डाला। मैसूर में सीखा था कि जहाँ उनकी विष्ठा होगी वहाँ वे नही रहते। इसलिए टोकरी में बिछाए कागजों में छेद कर दिए, ताकि छोटे कंकड जैसी विष्ठा नीचे जमा हो जाए। पहले दिन दूसरी पत्त्िायाँ भी खाने को रखी थीं, जबकि आज केवल आम की पत्त्िायाँ रखीं। सुरवंट फिर चुपचाप टोकरी में दुबक गए।
दो-तीन घंटे बाद फिर वही खेल दुहराया गया। यों दोपहर ढलने तक तीन चार बार हुआ। भला हो कि उस दिन रविवार था, सबकी छुट्टी थी। लेकिन सुरवंटों के डंख हरेक को कम या अधिक बार चुभ चुके थे। आखिर हमने हार मान ली। हमारे आंगन के सामने एक खाली जमीन थी, जिसपर कई छोटे झाड झंखाड उगे थे। उन्हीं के बीच में हमने सुरवंटो भरी टोकरी को छुपा दिया। ऊपर से पुराने कपडे भी डाल दिए ताकि सुरवंट देखकर कोई पक्षी उन्हें खाने के लिए न आ जाए। दूसरे दिन सुबह उधर जाकर देखा तो टोकरी में एक भी कीडा नही था। उन सुरवंटों को पक्षी खा गए या चीटीयाँ? झंखाड की कटीली झाडियाँ उन्हें चुभीं, या उन्होंने अपने को संभाल कर रखा- कुछ पता नही।
दसेक दिन बाद हमारे बगीचे में हल्की हरी तितलियों का एक झुण्ड दीख गया। लेकिन कैसे कहें कि वे हमारे ही सुरवंटों की तितलियाँ थीं या कोई दूसरी? वैसे सुरवंट या तितली दुबारा नहीं देखी।
हमारे बगीचे में बडे जतन से लगाया एक जायपत्री का पेड भी है। इसकी कोमल पत्त्िायों की गुलाबी छटा बडी मोहिनी है। उसी छटा के गुलाबी सुरवंट भी मैंने कभी कभी उन पत्तों पर देखे हैं। लेकिन अब हम उन्हें कुछ करने का साहस नही करते।
Wednesday, August 8, 2007
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