टोटो का, और सच पूछो तो सभी कुत्तों का एक बाल- हठ होता है कि उसे घर का जिम्मेदार व्यक्ति माना जाय, वही सम्मान दिया जाय। जब मेहमान घर में आएँ तो उनका परिचय करवाया जाय, उन्हें मेहमानों से भेंट करने (या चाटने !) दिया जाय। और जहाँ आप सब बैठकर बातें करेंगे वहाँ उन्हें भी बैठने दिया जाय।
लेकिन जरूरी नहीं कि हर मेहमान को कुत्ते पसंद हों। इसलिए हमने पहले प्लान बनाया कि मेहमान आयेंगे तो टोटो को बालकनी में भेजा जाएगा। फिर भी उसे न लगे कि उसे अकेले बाहर बंद कर दिया है इसलिए हमने दरवा.जे के साथ-साथ डेढ गज ऊँचा जाली का एक और दरवा.जा बनवाया ताकि टोटो का सिर दरवा.जे से ऊपर रहे और वह हमें देख सके। फिर भी जब मेहमानों के कारण उसे बालकनी में भेज कर हम छोटे दरवाजे की कुंडी लगा देते तो वह पहले कूं-कूं कर रोने लगता। फिर जैसे छोटे बच्चे धीरे-धीरे अपना रोने का सुर ऊँचा करते हैं, वैसे ही वह भी करता था। फिर यदि हमने मेहमानों को समझा बुझा कर उसे अंदर ले लिया तो प्रकाश के पैरों के पास बैठकर गंभीरता से हमारी बातें सुनता था। जब उन्हें रिक्शा तक छोड़ने के लिए हम जाते तो वह भी साथ जाता। ख़ास कर उनमें से जो बच्चे या औरतें हों तो उनके साथ रहता मानो वह समझ रहा हो कि किसका ज़्यादा ख़्याल रखना है।
आदित्य केवल तीन चार महीने का रहा होगा तब कि बात है। मैं उसे लेकर आठ-दस दिन के लिए दूसरे गाँव गई थी। लौटने पर पहले घर में मैं अकेली ही घुसी। टोटो ने पहले मेरे साथ काफ़ी उछल कूद कर ली। फिर हम पड़ोसी के घर में रखे आदित्य को उठा लाए। टोटो उसके साथ भी खेलने और उसे चाटने के लिए उतावला हो रहा था। प्रकाश ने कहा - देखो टोटो, मैं तुम्हें आदित्य के पास आने दूँगा लेकिन सँभल कर आना, वह छोटा बच्चा है और सो रहा है। प्रकाश ने आदित्य को अपनी बाँहों में उठा रखा था। टोटो हवा में थोड़ा सा लपका और बड़ी ही कोमलता से उसने आदित्य के मुँह को चूम लिया। वह दृश्य अब भी मेरी आँखों के सामने है।
जब आदित्य छह सात महीने का होकर घुटनों पर चलने लगा तब की बात है। दोपहर का समय था। मैंने टोटो के लिए ज्वार की रोटी का चूरा और दूध सान कर उसकी थाली बालकनी में रखी और उसे खाने के लिए कह कर अपने काम में लग गई। जरा सी देर में लगा कि टोटो के खाने की आवा.ज क्यों नहीं आ रही ! और आदित्य कहाँ है ! बालकनी में जाकर देखा तो आदित्य वहाँ पहुँच कर टोटो की थाली से रोटी के टुकड़े निकाल कर अपने मुँह में डाल रहा था और टोटो थाली छोड़कर दूर एक कोने में चुपचाप बेचारगी की मूर्ति बना खड़ा था, मानों कह रहा हो - देखो, मेरी कोई गलती नहीं है।
आदित्य जब तक खड़ा होकर चलने लगा, तब तक टोटो शानदार भरा - पूरा कुत्ता बन चुका था, आदित्य से कुछ ऊँचा ही था। फिर भी आदित्य उसे यों बरतता जैसे - वह कोई खिलौना हो। अदित्य ने उसका नाम भी बदल कर -भप्पी कर डाला। भप्पी स्पीक, भप्पी दौड़ जा, भप्पी पत्थर ढूँढ़ ला - - यहाँ तक ठीक था। लेकिन जब आदित्य कहता भप्पी हील, और टोटो उसकी बाँई ओर अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो जाता तो सबको हँसी आ जाती। लोगों ने इस जोडी का नाम रखा 'लिटिल मास्टर विथ बिग फ्रेंड'।
हमारे ही इलाके सदर्न कमांड का मुख्यालय था और उन दिनों आज की तरह उस रास्ते पर आने जाने के लिए कोई पाबंदियाँ नहीं थीं। भारत पाक युद्ध के दौरान कब्.जा किया गया एक पैटन टैंक मुख्यालय के सामने रखा हुआ था (उसे अब हटाकर संभाजी पार्क में रखा गया है।) रोज शाम प्रकाश, आदित्य और टोटो उधर घूमने जाते तो आदित्य और टोटो उस टैंक पर जा बैठते थे। फिर उस पर से नीचे कूदने का और दुबारा जम्प लगाकर ऊपर चढ़ने का सिलसिला शुरु हो जाता। इसमें आदित्य के जम्पस् केवल छुन्नू-मुन्नू होते थे और प्रकाश ने उसे कंधे से पकड़ा होता था। लेंकिन टोटो पूरी सक्रियता से जम्प लगाता।
यहीं से कुछ आगे जाने पर सदर्न कमांड के अन्य अफसरों के घर थे, जिनमें पांच-छह फुट ऊंची कम्पाउंड वॉल्स लगी हैं। वहाँ भी टोटो छलांग लगाकर चढ़ जाता। हर दिन उसके नियमित व्यायाम के लिए ऐसी पांच-छह छलांग उससे लगवाते थे। टहलने के लिये निकले बाकी लोगों के लिए यह एक कौतुक का विषय था।
कई बार कम्पाउंड वॉल्स उतनी चौड़ी नही होती कि छलांग लगाकर उस पर बैठा जा सके। इसके लिये टोटो को दो शब्द सिखाये थे। 'अप' या जम्प का अर्थ था कि उपर चौड़ी जगह है, चढ़ कर बैठ जाओ। लेकिंन 'उफ-फू' का अर्थ था कि ऊपर बैठने लायक जगह नहीं है, सो वहाँ जरा से पैर टिकाकर दूसरी तरफ जमीन पर कूद जाना है। इसमें भी टोटो प्रवीण हो गया था। लेकिंन यह सिखाने के लिये प्रकाश को खुद उसे एसी छलांग लगाकर दिखाना पड़ा था जिनकी कम्पाउंड वॉल ऐसे ट्रेनिंग के लिये काम आई, उन अफसरों के साथ प्रकाश की दोस्ती हो गई।
Wednesday, August 8, 2007
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